22 दिसम्बर 1964 की रात में 270 कि.मी/घंटा से आया भयंकर चक्रवातीय लहर में धनुषकोटि ध्वस्त हो गई। इस चक्रवात में केवल एक ही व्यक्ति बचा, उसका नाम कालियामन था। अब यहाँ खंडहर के अवशेष रह गये हैं। इस चक्रवात के बाद मद्रास सरकार ने इसे भुतहा शहर घोषित कर दिया। दशकों तक धनुषकोटि वीरान परा रहा, यहां कोई आता जाता नहीं था। अब सरकार फिर से पर्यटन और तीर्थस्थल से जोड़ने का प्रयास कर रही है। भुतहा शहर देखने की रुचि ने पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगी हैं।
अंग्रेजों के समय धनुषकोटि बड़ा शहर और तीर्थ स्थल भी था। तीर्थ यात्रियों की जरूरतों के लिये वहां होटल, कपड़ों की दुकानें और धर्मशालाएं भी थी। उन दिनों धनुषकोटि में रेलवे स्टेशन, अस्पताल, पोस्ट ऑफिस आदि भी थी। जब स्वामी विवेकानंद 1893 में यूएसए में आयोजित धर्म संसद में भाग लेकर पश्चिम की विजय यात्रा कर के श्रीलंका होते हुए लोटे थे, तो अपने कदम भारतीय भूमि धनुषकोटि पर रखे।
हिदूं धर्मग्रथों में धनुषकोटि का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व है। हिदूं धर्मग्रथों के अनुसार भगवान राम ने नल और नील की सहायता से लंका में प्रवेश करने के लिए सेतु बनाये थे, इसलिये इसे रामसेतु के नाम से जाना जाता है। लंका से लोटने के बाद विभीषण के अनुरोध भगवान राम ने अपने धनुष के एक सिरे से सेतु को तोड़ दिया। इसलिये इसका नाम धनुषकोटि पड़ा।
यहाँ दो समुद्रों के संगम है। पवित्र सेतु में स्नान कर तीर्थयात्री रामेश्वरम में पूजा के लिए अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं। यहाँ से रामेश्वरम करीब 15 किलोमीटर दूर है। धनुषकोटि में रात में रुकना मना है, क्योंकि 15 किलोमीटर का रास्ता सुनसान, भयानक डरावना और रहस्यमयी है। इसलिये सूर्यास्त से पहले रामेश्वरम लौट आएं। यहाँ भगवान राम से संबंधित यहां कई मंदिर हैं। पौराणिक महत्व, इतिहास, प्रकृतिक में रुचि रखने वालों को यह स्थान एक बार अवश्य देखना चाहिए।
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