महाभारत काल से भटक रहे अश्वत्थामा के चौंका देने वाले रहस्य! अश्वथामा क्या आज भी जिंदा हैं !
महाभारत युद्ध के बाद जीवित बचे योद्धाओं में से एक अश्वत्थामा भी थे। महाभारत काल में अश्वत्थामा एक एक ऐसे योद्धा थे जिसे कोई नहीं हरा सकाता था। क्योंकि वे अजय-अमर थे। उनके माता का नाम कृपी और पिता द्रोणाचार्य थे । जन्म से ही उनके मस्तक में मणि थी और मणि के कारण ही उन पर किसी भी दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि का असर नहीं होता था। लोक कथाओं के अनुसार जब अश्वत्थामा का जन्म हुआ तो जन्म लेते ही अश्व के समान घोर शब्द किया था। तभी आकाशवाणी हुई कि यह बालक अश्वत्थामा के नाम से प्रसिद्ध होगा।
महाभारत से तो आप ने अश्वत्थामा की वीरता की कहानी पढ़ें और सुनें ही होंगें फिर भी संक्षिप्त में बता देता हूँ। महाभारत युद्ध में अश्वत्थामा अपने पिता द्रोणाचार्य के साथ कौरवों के साथ युद्ध किये थे और कौरवों के सेनापति भी बने थे। पिता-पुत्र दोनों ही महान पराक्रमी योद्धा थे। अश्वत्थामा ने द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या के साथ-साथ सारे दिव्यास्त्र में सिद्ध कर लिए थे।
यहाँ तक की नारायणास्त्र का ज्ञान प्राप्त कर लिए थे, नारायणास्त्र का ज्ञान द्रोणाचार्य के अलावा सिर्फ अश्वत्थामा को ही था। द्रोणाचार्य के होते हुए पांडव को युद्ध में विजय प्राप्त नहीं हो सकता था, इसलिए श्रीकृष्ण कूटनीति का सहारा लेकर छल से द्रोणाचार्य का वध करवा दिये थे। पिता की मृत्यु के पश्चात अश्वत्थामा ने पांडव वंश के वध करने की प्रतिज्ञा ली।
युद्ध के पश्चात द्रोपदी के पाँचो पुत्र का वध कर दिया और अभिमन्यु पुत्र परीक्षित जो उत्तरा के गर्भ में था उसे मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया लेकिन भगवान श्री कृष्ण उत्तरा के गर्भ में पल रहे बालक की रक्षा की थी। श्री कृष्ण अश्वत्थामा के मस्तक पर लगी मणि निकालकर युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दे दिया। कहा जाता है तब से आज तक अश्वत्थामा भटक रहें हैं।
शिव महापुराण और भविष्य पुराण के अनुसार आज भी जीवित हैं। भविष्य पुराण के अनुसार जब भगवान विष्णु कल्कि अवतार में जन्म लेंगे तब अश्वत्थामा के साथ मिल कर धर्म युद्ध लड़ेंगे। शिव महापुराण (शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार भी जीवित हैं और गंगा के किनारे किसी अज्ञात स्थान पर पर रह रहें हैं।
आर्यभट्ट के अनुसार 3137 ईपू में महाभारत का युद्ध हुआ था। चतुर्वेदी इतिहास श्रीकृष्ण का जन्म 3114 विक्रम संवत पूर्व हुआ था। पिछले लगभग 5000 वर्षों से अश्वत्थामा भटक रहे हैं। लेकिन 2000 वर्ष पूर्व ही अश्वत्थामा श्राप से मुक्त हो चुके हैं और अब उनके जिंदा होने की संभावना कम है। कहा यह भी जात है कि अश्वत्थामा अपनी इच्छा शक्ति से जब तक चाहें जिंदा रह सकतें हैं। हिन्दू धर्म के आठ अजय-अमर नामों में एक नाम अश्वत्थामा का भी है।
कहा जाता है कि एक बार पृथ्वीराज चौहान जब जंगल में गये थे तो उन्हें एक बूढ़ा साधु मिला। साधु के माथे पर घाव था और उस घाव के कारण साधु बहुत पीड़ा हो रही थी। पृथ्वीराज साधु से कहा कि मैं आपका यह घाव ठीक कर दूंगा मुझे आयुर्वेद का ज्ञान है। पृथ्वीराज ने आयुर्वेद औषधियों से घाव ठीक करना चाहा लेकिन घाव ठीक नहीं हुआ। पृथ्वीराज सोच में पर गया की जिन औषधियों गहरा से गहरा घाव ठीक हो जाता है। इस घाव पर औषधि का असर क्यों नहीं हो रहा है। फिर एक दिन पृथ्वीराज ने साधु से पूछा आप कौन हैं और यह घाव कैसे हुआ, क्या आप अश्वत्थामा हैं? साधु ने कहा हाँ मैं अश्वत्थामा हूँ। कहा जाता है कि अश्वत्थामा ने ही पृथ्वीराज को शब्दभेदी बाण का चलाने की विधि बताई थी।
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के लोगों की माने तो असीरगढ़ किले के मौजूद शिवमंदिर में प्रतिदिन सबसे पहले अश्वत्थामा पूजा करतें हैं। मंदिर के शिवलिंग पर प्रतिदिन फूल एवं गुलाल चढ़ा मिलना है। विंध्यांचल की पहाड़ियों में भगवान भोलेनाथ रहतें हैं, और माना जाता है कि यहाँ वह आज भी तपस्या करते हैं।
मध्य प्रदेश के ही जबलपुर में नर्मदा नदी के किनारे गौरीघाट है। स्थानीय निवासियों के अनुसार यहाँ अश्वत्थामा रहतें हैं और अपने मस्तक के घाव से खून को रोकने के लिए तेल और हल्दी स्थानीय लोगों से मांगा करते हैं। स्थानीय बुजुर्गों की मानें तो जो एक बार उन्हें देख लेता है, वो अपना मानसिक संतुलन खो देता है। अश्वत्थामा के बारे में ऐसी बहुत से लोक कथाएँ हैं। आज भी यह रहस्य है कि अश्वत्थामा कहां गया और क्या वो जिवित है? किसी भी ग्रंथ में या किसी भी काल में उनकी मौत कोई प्रमाण नहीं हैं।
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