अद्भुत है हिमालय का रहस्य


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हिमालय का रहस्य

हिमालय का रहस्य

आज भी हिमालय में ऐसे-ऐसे स्थान हैं जहाँ देवी-देवताओं रहतें हैं और अनेक ऋषि मुनि तप करते है। यहाँ जैन, बौद्ध और हिन्दू धर्म के मठ, और मंदिर हैं। यहाँ आज भी कई ऐसे ऋषि-महर्षि हैं, जो कई युगों से तपस्या कर रहे हैं। हिमालय की तराई, गुफाओं, मठ और मंदिर में हिन्दुओं के धर्म प्राचीन इतिहास है, इसलिये यहाँ आज भी सनातन धर्म के इतिहास का अध्ययन किया जा सकता है। यहाँ अति प्राचीन ब्राहमी लिपि लिखा मिली है जिसे आज तक कोई पढ़ नहीं पाया है।
हिमालय एक पहाड़ नहीं है, हिमालय एक पहाड़ों की श्रृंखला है। भारत का प्राचीन काल से ही इतिहास हिमालय से जुड़ा हुआ है, क्योंकि प्राचीन काल में हिमालय में ही देवी-देवता रहते थे। मुण्डकोपनिषद् के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। इनका केंद्र हिमालय की वादियों में उत्तराखंड में स्थित है। इसे देवात्मा हिमालय कहा जाता है। पुराणों के अनुसार प्राचीनकाल में विवस्ता नदी के किनारे मानव की उत्पत्ति हुई थी। हजारों किलोमीटर क्षेत्र में फैला हिमालय में प्रकृति के चमत्कार और रहस्य देखने को मिलतें हैं। यहाँ दुर्लभ से दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भंडार है जिससे यहाँ के अद्भुत सुंदर घाटियों में रहने वालों को कभी दमा, टीबी, गठिया, संधिवात, कुष्ठ, चर्मरोग, आमवात, अस्थिरोग, नेत्र रोग आदि रोग नहीं होती है।
यहाँ कस्तूरी मृग, हिम मानव, इच्छाधारी नाग या मणिधारी नाग जैसे अनेक दुर्लभ से दुर्लभ प्रजाति और एक से एक रहस्य प्रजाति के जीव निवास करतें हैं। देवभूमि हिमालय प्राकृतिक खूबसूरती से सराबोर है। मानव की उत्पत्ति पुराणों में वर्णन किया गया है, कि हिमालय क्षेत्र की विवस्ता नदी के किनारे मानव की उत्पत्ति हुई थी। कई शोधों के अनुसार भी मानव की उत्पत्ति हिमालय में हुई थी। कैलाश, मानसरोवर, अमरनाथ, कौसरनाग, वैष्णोदेवी, पशुपतिनाथ, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देवप्रयाग,ऋषिकेश, अमरनाथ आदि जैसे बहुत ही पावन हिंदू तीर्थ स्थान हैं। यहां अनेक चमत्कारी गुफाएं और स्थान है जहाँ आम मनुष्य नहीं जा पाता हैं।

सिद्धाश्रम: हिमालय में एक सिद्धाश्रम है जहाँ सिद्ध योगी और साधु रहते हैं। इसका वर्णन चारों वेदों के अलावा अनेकों प्राचीन ग्रन्थों में मिलती है। इस दिव्य स्थान का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा ने ब्रह्मा जी के कहने पर की थी। स्वामी सच्चिदानंद परमहंस ने सबसे पहले सार्वजनिक रूप से इस स्थान के बारे में बतातें हैं कि यह रहस्यमय दिव्य स्थान कैलाश पर्वत के पास है। हिन्दु महाकाव्यों के अनुसार महर्षि वेदव्यास ने 18 पुराणों की रचना की यहीं पर किये थे। महाकाव्यों, वेदों, और उपनिषदों में इसे अलग-अलग नामो से वर्णन किया गया है, जैसे ज्ञानगंज मठ, शांग्री-ला, शंभाला सिद्धआश्रम आदि। यहाँ रहने वाले सिद्ध योगी, साधु, ऋषियों के उम्र रुक जाती है और यहाँ किसी की मृत्यु नहीं होती है। स्वामी सच्चिदानंद परमहंस जी सिद्धाश्रम के संस्थापक एवं संचालक हैं। कौन-सा मठ क हाँ पर है और कितनी गुफाओं में कितने संत विराजमान हैं, दसनामी अखाड़े, नाथ संप्रदाय के इतिहास में दर्ज है। इसलिए हिमालय को देवभूमि का संज्ञा दिया गया है।

कृपाचार्य : कृपाचार्य महर्षि गौतम शरद्वान् के पुत्र थे। कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के कुलगुरु थे। कृपाचार्य ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध किये थे। महाभारत के युद्ध में जिंदा बच गए 18 महायोद्धाओं में से एक थे। कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा थे और अश्वत्थामा के ही तरह वे भी अजय-अमर थे। उन्हें भी चिरंजीवी रहने का वरदान था। वे सात चिरंजीवियों में वे भी एक हैं। हिन्दु लोक कथाओं के अनुसार वे भी हिमालय के किसी अज्ञात क्षेत्र में रह रहें हैं।

महर्षि वेदव्यास: महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ की रचयिता थे। वेदव्यास पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार महर्षि वेदव्यास स्वयं भगवान विष्णु के स्वरूप थे। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार ये कई युगों से जीवित हैं और सभी युगों में ग्रंथों की रचना करते रहतें हैं। हिन्दु लोक कथाओं के अनुसार आज भी हिमालय के गंगा तट क्षेत्र में कहीं रहते हैं।

अश्वत्थामा : महाभारत के युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य वध का बदला लेने के लिये द्रौपदी के सो रहे पुत्रों को वध किया और उत्तरा के गर्भ में पल रहे बालक का वध करने के लिए ब्राह्मास्त्र का प्रयोग किया था। तब भगवान श्रीकृष्ण अश्वत्थामा के मस्तक से मणि निकालकर युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दे दिया। तब अश्वत्थामा महर्षि वेदव्यास जी से कहा कि आप मैं आपके साथ रहूंगा।

विभीषण : विभिषण ने रावण का वध करने में श्री राम की मदद किये थे। रावण के छोटे भाई विभिषण ने अधर्म का रास्ता छोड़ कर धर्म का साथ दिया था। तब भगवान राम ने प्रसन्न होकर विभीषण को चिरंजीवी होने का वरदान दिया था। मान्यता के अनुसार विभिषण लंका छोड़ कर हिमलय में रहने आ गये और आज भी हिमलय के किसी क्षेत्र में रह रहें हैं।

हनुमान जी: महाबली हनुमान जी को एक कल्प अर्थात कलि काल के अंत रहने का वरदान मिला है। श्रीमद भागवत पुराण अनुसार हनुमान जी का निवास स्थान गंधमादन पर्वत पर बताया गया है। गंधमादन पर्वत, हिमवंत पर्वत के पास हिमालय पर है। गंधमादन पर्वत, हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में है। आज यह क्षेत्र तिब्बत में है, और हनुमान जी इसी पर्वत पर रहतें हैं।

परशुराम : भगवान विष्णु जी के छठें अवतार परशुराम जी हैं। परशुराम जी सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में भी थे। तीनों युग में हिन्दु ग्रंथों में अनेक कथाओं का वर्णन है। ग्रंथों के अनुसार परशुराम कलिकाल के अंत तक रहेंगे और जब भगवान विष्णु जी कलयुग में कल्कि अवतार लेंगे तब परशुराम जी वेद-वेदाङ्ग की शिक्षा प्रदान करेंगे। भगवान परशुराम जी चिरंजीवी हैं और कहा जाता है कि हिमालय के महेंद्र पर्वत क्षेत्र में अपने तप में लिन हैं।

जामवंत: जामवंत जी का जन्म सतयुग में राजा बलि के काल में हुआ था। उम्र में परशुराम जी और हनुमान जी से बडे हैं। सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में उनके होने का वर्णन ग्रंथों में मिलता है। जामवंत सतयुग से ही हिमालय पर आते-जाते रहें हैं। उन्होंने ही हिमालय में पाये जाने वाले दुर्लभ जड़ी-बूटी संजीविनी के बारे में बताया था। कहते हैं कि जामवंत को भी चिरंजीवी वरदान मिला हुआ है और हिमालय के किसी गुफा में आज भी रह रहें हैं। कलियुग के अंत तक रहेंगे।

मार्कण्डेय: ऋषि मार्कण्डेय भगवान शिव के परम भक्त थे, उन्होंने महामृत्युंजय जाप करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली थी और अजर-अमर हो गए। कहते हैं कि वे भी हिमालय की किसी गुफा में रह रहें हैं।

राजा बलि: असुरों के राजा बलि वर्णन पुराणों में है। राजा बलि दान-पुण्य करने वाले धर्मात्मा राजा थे। समय के साथ घमंडी हो गय और देवताओं का घोर विरोधी हो गय थे। भगवान विष्णु जी ने कश्यप ऋषि के यहाँ जन्म लिया जिसे हम सभी वामनावतार के रूप में जानते हैं। राजा बलि ने विष्णु जी को प्रसन्न कर चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त कर लिया। कहते हैं कि वो आज भी जिंदा हैं और हिमालय के जंगल में किसी गुफा में रह रहें हैं।

ॐ पर्वत

ॐ पर्वत: हिमालय पर्वतमाला कई अनसुलझे दैवीक और प्रकृतिक रहस्यों से भरा है। ॐ पर्वत किसी दैवीय चमत्कार और प्रकृतिक चमत्कार का अदभुत जिता- जगता रहस्यमय चमत्कार से कम नहीं हैं। हिन्दु धर्म ग्रंथो और अनेकों पौराणिक कहानियों के अनुसार 8 अलग-अलग तरह की ॐ की आकृतियाँ बनी हुई हैं।लेकिन केवल एक ओम पर्वत की ही आकृति के बारे में पता चल सका है, जो 6191 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय भारत, तिब्बत और नेपाल की सीमा के पास है। कैलाश और आदि कैलाश के बीच स्थित इस पर्वत से बर्फ गिरने पर प्राकृतिक रूप से ओम की ध्वनि उत्पन्न होती है, जो दैवीक और प्रकृतिक चमत्कार का एक और उदाहरण है। वर्षों से अनेकों पर्वतारोहियों के दल यहाँ पहुंचने का प्रयास कर चुके हैं पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया है। हिन्दु धर्म में ॐ का बहुत ही महत्व है इसलिय यह एक तीर्थ स्थल और भगवान शिव का घर भी कहा जाता है। ॐ पर्वत के अनन्त रहस्य हैं।

कस्तूरी मृग

कस्तूरी मृग

कस्तूरी मृग को ‘हिमायलन मस्क डियर’ के नाम से भी जाना जाता है। हिमालय के वनाच्छादित क्षेत्र में कस्तूरी मृग पाया जाता है। हिमालय पर 8000 से 12000 फुट की ऊँचाई पर पाया जाने वाला दुर्लभ प्रजाति है। यह अपनी आकर्षक खूबसूरती के साथ-साथ नाभि से निकलने वाली खुशबू के लिए जाना जाता है। इसकी नाभि में गाढ़ा तरल पदार्थ होता है जिसे कस्तूरी कहते हैं। कस्तूरी बहुत ही मनमोहक सुगंधित धारा बहती है और यह केवल नर मृग में ही पाया जाता है। इसकी याददाश्त शक्ति काफी मजबूत है।

हिम मानव  - यति

हिम मानव (यति)

हिमालय अनेक रहस्यमयी प्राणियों का बसेरा है। रहस्यमय जीव में से एक है हिम मानव यानी यति जो हिमालय की हिमालय की बर्फीली गुफाओं में रहते हैं। हिम मानव (येती ) को ज्यादतार नेपाल और तिब्बत के हिमालय क्षेत्र में देखे जाने की बात सामने आती रही है। यह लगभग 7 से 9 फुट लंबा और 200 किलो होने का अनुमान लगाया गया है। इसकी वर्णन पौराणिक ग्रंथों में भी आदी मानव के रूप में है। कई युगों से यति की कहानियां सुनने को मिलती है। यह विशालकाय प्राणी इंसानों की तरह दो पैरों पर चलता है। इसके शरीर पर घने बाल थे और काला दिखता है। कहा जाता है यह बर्फीले इलाके के गुफाओं में रहता है और इसका शक्ल डरावना होता है। लद्दाख के कुछ बौद्ध मठों ने दावा किया है कि हिम मानव (यति ) को देखा है। 1832, 1925, 1938, 1974 और 09 अप्रैल, 2019 भारतीय सेना हिम मानव को देखने की बात कही है। मकालू बेस कैंप के पास 32 x5 इंच लंबे पैर के निशान देखे गए हैं। यह तो निश्चित है कि हिमालय पर हिम मानव रहते हैं पर इसका सटीक प्रमाण अभी तक नहीं मिला है।

कमल

कमल

हिमालय पर कदम-कदम पर प्रकृति के अलौकिक और अद्भुत रूप देखने को मिलता है। हिमालय एक से एक अद्भुत फूलों को आप देख सकतें हैं जो अति दुर्लभ है और सिर्फ यहाँ ही पाया जाता है। हिमालय पर चार प्रकार के अति दुर्लभ नील कमल, ब्रह्म कमल, फेन कमल और कस्तूरा कमल पाये जाते हैं, जो हिन्दु धर्म में ये पूजनीय माने जाते हैं। ब्रह्मकमल सितंबर खिलता है और जहाँ खिलता है, वहाँ सुगंध से भर जाता है। ब्रह्मकमल केवल रात्रि में ही खिलता है | फेन कमल जुलाई से सितंबर तक खिलता है और यह बैंगनी रंग का होता है। कस्तूरा कमल बर्फ की तरह सफेद होता है, यह भी फेन कमल की प्रजाति के ही है। नील कमल अति दुर्लभ है और इसे आप आसानी से पहचान नहीं पयेंगे।


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