यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल पेरू की मिस्टीरियस नाज्का लाइंस (Nazca Lines) प्राचीन नाज़ा संस्कृति है या एलियन कनेक्शन है?
दुनियां रहस्यों से भरे पड़े है। दक्षिण अमेरिकी देश पेरू की राजधानी लीमा से 400 किलोमीटर नाज्का लाइंस हैं। नाज्का लाइंस के रेगिस्तान में चित्रों की एक श्रृंखला है। सभी लाइनों की संयुक्त लंबाई 1300 किलोमीटर से अधिक है। 80 किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्रफल में फैले सैकडों रेखाचित्रों का संग्रह हैं । यहाँ बहुत से जानवरों और पौधों के चित्र बनी है। यहाँ 800 स्ट्रेट लाइंस हैं जिनमें 300 ज्योमैट्रिक चित्र बने हुए हैं जिनमें से 7 एनिमल और प्लांट की चित्र हैं। सबसे बड़ा वाला चित्र लगभग 370 मीटर लंबा है। ये ऊँची जगहों से दिखाई देती हैं। इनका निर्माण 200 ई.पू और 500 ई.पू के मध्य हुई हैं।
इन चित्रों में चिड़ियों, मकड़ी, मछली, लामा, जगुआर, बंदर, छिपकली, कुत्ते, पेड़, मानव आदि के बने हैं। कुछ चित्र ज्यामितीय रेखाएं भी बनी हैं। ये सभी आकृतियाँ गणित ज्यामितिय आकृति और खगोलिय संरचनाओं को दर्शाति है। आज से लगभग 2500 साल पहले इंसानों द्वारा ये रेखाएं 4 से 6 इंच गहरी जमीन को खोदकर बनाई गईं हैं। जमीन की ऊपरी परत लाल-भूरे रंग के है, जबकी जमीन की निचली परत पीले-भूरे रंग की है। पठार के शुष्क और स्थिर जलवायु के कारण चित्रों को प्राकृतिक रूप से संरक्षित है।
1920 में पहली बार इन्हें हवाई जहाज से देखा गया था। जमीन से देखने पर मकड़ी की जाल के अलावा और कुछ समझ में नहीं आता है। पहली बार जब इन चित्रों को देखा गया तो पूरा विश्व आश्चर्यचकित रह गया। नीचे से देखने पर ये रेखाएं आपस में उलझी हुई रेखाएं मालूम होती है, लेकिन ये रेखाएं आसमान से साफ दिखाई देती हैं। स्थानीय लोगों कि मानें तो इन चित्रों को हजारों साल पहले इनके पुर्वज ने बनाया है इसीलिए इन्हें नाज्का रेखाएं या नाज़का ड्राइंग्स भी कहते हैं।
विद्वानों की माने तो यह चित्र नाज़ा संस्कृति द्वारा निर्माण किया गया था। कुछ विद्वानों इन्हें किसी धार्मिक अनुष्ठान की निशानी मानते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार नाज़ा सभ्यता के लोगों का ये विश्वास था कि आकाश से देवता इन चित्रों को देखेंगे। लेकिन आज तक यह पता नहीं चल है कि उनके देवता कौन थे? इसके बारे में लोगों का ये भी मानना है कि दूसरे ग्रह से आये परग्रही को रास्ता दिखाने और स्पेस शीप (UFO) उतरने के लिये बनाये गये थे, तो क्या नाज्का सभ्यता का संबंध परग्रही से था।
पहले कुछ अध्ययन करों का ये मानना था कि यह सिंचाइ के लिए बनाई गई है। हजारों की संख्या में बने यह चित्र ऐसे वीरान स्थान पर उद्देश्य से और क्यों बनाया होगा? यह रहस्य की गुत्थी आज भी नहीं सुलझी है। वैज्ञानिकों को ये समझ में नहीं आ रहा है कि प्राचीन लोग के पास ऐसी कौन सी टेक्नोलॉजी थी जिसका उपयो कर इन विशाल चित्र को बनाया गया। क्या प्राचीन लोग मैथमेटिक्स और ज्योमेट्री के जानकार थे के धरती पर रहकर बिना आसमान से देखे बिल्कुल सटीक रेखाएं बना सकते थे। हमारे प्राचीन लोग हमेशा से रहस्यमय रहें हैं। संभव है भविष्य में हम इन रहस्यों को शायद समझ पायें।
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