चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो के जीवन की कहानी


दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो

तो चलिए जानते हैं, कैसे एक किसान का बेटा दलाई लामा बन गया? तिब्बत बौद्ध धर्म गुरू दलाई लामा से आख़िर चीन चिढ़ता क्यों है?

तिब्बत में दलाई लामा को अवलोकितेश्वर भगवान बुद्ध का अवतार माना जाता है। तिब्बत बौद्ध धर्म की मुख्य साधना स्थल रही है। तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू चौदहवें दलाई लामा वर्तमान में तेनजिन ग्यात्सो हैं। दलाई लामा का अर्थ है, ज्ञान का महासागर। 8वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ था। तिब्बत के लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं।

दलाई लामा बौद्ध धर्मगुरु हैं। तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु की मृत्यु के बाद ही उत्तराधिकारी की खोज की जाती है। उत्तराधिकारी के चुनाव का पुनर्जन्म के आधार पर तय होता है। दलाई लामा के मृत्यु के लगभग दो साल के बाद उत्तराधिकारी खोज की जाती है। दलाई लामा का पुनर्जन्म कहाँ होगा इसके कुछ संकेत स्वयं दलाई लामा अपनी मृत्यु से पहले अपने सहयोगियों को बाता देते हैं। जिसके आधार पर नये दलाई लामा की खोज की जाती है।

1933 में 13वें दलाई लामा की मृत्यु हुई थी। इसके बाद नए दलाई लामा की खोज शुरू हुई। खोज के वक्त देखा गया की दलाई लामा का पारथिक शरीर दक्षिण दिशा से मुड़कर पूर्व दिशा की ओर हो गया। कई दिन के ध्यान और पूजा के बाद मूंगिया रंग की एक छत वाला घर देखा गया। इसके दो साल बाद ल्हासा से गए उत्तराधिकारी खोजी दल ने पूर्व के आमदो प्रांत में ऐसी ही एक मूंगिया रंग की एक छत वाला घर देखा गया, यह घर एक किसान का था। 13वें दलाई लामा के सहयोगियों ने मालाओं, छड़ी और दूसरी चीजों के आधार पर बच्चे खोज लिया गया। आज यही बच्चा 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो हैं।

14वें दलाई लामा का पुनर्जन्म 6 जुलाई 1935 को तिब्बत के आमदो प्रांत के टेस्टसर में हुआ था। इन्होंने छह वर्ष के उम्र में अपनी मठवासीय शिक्षा प्रारंभ की और २३ वर्ष की उम्र में जोखांग मंदिर, ल्हासा में अपनी फाइनल परीक्षा दी। उन्होंने बौध दर्शन में पी. एच. डी. प्राप्त की। 1949 में तिब्बत पर चीन के हमले के बाद दलाई लामा से कहा गया कि वह तिब्बत की सत्ता अपने हाथ में ले लें।

1956 में वह बीजिंग जाकर चीनी नेताओं से बातचीत भी किये। जब चीन सैनिक ने हजारों तिब्बती लोग मार डाला। तब दलाई लामा 17 मार्च 1959 को भारत में शरण ली। दलाई लामा भारत के शहर धर्मशाला में रहतें हैं, जो केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का मुख्यालय भी है। दलाई लामा ने संयुक्त राष्ट्र से तिब्बत मुद्दे को सुलझाने के लिये अपील की है। 1959, 1961 और 1985 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा तीन प्रस्ताव भी पारित किए जा चुके हैं। इन्होंने 50 से अधिक पुस्तकें भी लिखीं हैं।

तिब्बत की मुक्ति के लिए अहिंसक संघर्ष जारी रखने और शांतिपूर्ण हल तलाशने के लिए 1989 का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। वो अपने को एक साधारण सा बौध भिक्षु ही मानते हैं। तिब्बत को एक शांति क्षेत्र बनाने का प्रयास आज भी जारी है। जहाँ सभी प्राणी शांति रह सकें और जहाँ पर्यावरण की रक्षा हो। ऐसे ही तिब्बत की कल्पना दलाई लामा करतें हैं।


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